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संगीताचा इतिहास

                       संगीताचा इतिहास-सामवेद 



 

सामवेद हा प्राचीन हिंदू संस्कृतीतील चार वेदांपैकी तिसऱ्या क्रमांकाचा वेद आहे. साम म्हणजे 'गायन' आणि वेद म्हणजे 'ज्ञान' होय.हा वेद ब्रह्मदेवाने लिहिला आहे असे मानले जाते.      

                                                                                                                                           

                                             निर्माण

                                            

ब्रह्मदेव निद्रेत असताना त्यांच्या तोंडातून तीन वेद निघाले.त्यांच्यापैकी एक म्हणजे सामवेद.                                                     

                                           साम शब्दाचा अर्थ 

               साम शब्दाचा पहिला अर्थ प्रिय किंवा प्रियकर वचन असा आहे. कुठे कुठे गान या अर्थानेही तो प्रयुक्त आहे. प्रचलित सामवेदाला हाच अर्थ लागू पडतो. सा च अमश्चेति तत्     साम्न: सामत्वम्‌। (बृहदारण्यक उपनिषद १.३.२२) सा म्हणजे ऋचा आणि अम् म्हणजे  गांधारादी स्वर होत. दोन्ही मिळून साम होते.



                                                      स्वरूप 

          सामवेदात ॠग्वेदातील ॠचांचे गायन कसे करावे याचे विवेचन आहे.सामवेदाला भारतीय संगीताचा पाया म्हटले जाते.यातील ७५ ऋचा ऋग्वेदाच्या शाकल शाखेतून घेतल्या, तर इतर ७५ या बाष्कल शाखेमध्ये मोडतात. या ऋचांचे गायन-सामगान हे सुचवलेल्या विशिष्ट सुरांमध्ये गायले जाते. सामगान गाऊन विशिष्ट विधी करतांना विविध देवतांना प्रसाद पेयार्पण म्हणून दूध व इतर पदार्थाबरोबर सोम वनस्पतीचा रस अर्पिला जाई.
सामवेदातील काही ऋचा या इ.स.पू. १७०० च्या आधी (ऋग्वेदाच्या कालखंडात) रचल्या असल्या पाहिजेत असे मानले जाते. भगवद्गीतेत श्रीकृष्णाने वेदानां अहम् सामवेदोस्मि असे म्हटले आहे, हा सामवेदाचा गौरवच आहे. कौथुम आणि राणायनीय, जैमिनीय या सामवेदाच्या शाखा मानल्या जातात. ताण्ड्य/पञ्चविंश, षड्विंश, साम विधान, आर्षेय, देवताध्याय, उपनिषद् आणि वंश ही सामवेदाची ब्राह्मणे आहेत.



                                                      गंधर्ववेद 

     गंधर्ववेद हा सामवेदाचा उपवेद आहे.




                                      सामवेद आणि यज्ञसंस्था

       वेदा हि यज्ञार्थ अभिप्रवृत्ता:| वेद हे यज्ञासाठीच प्रवृत्त झाले आहेत अशी वैदिकांची धारणा आहे. यज्ञातील वेगवेगळी कर्मे करणारे ऋत्विज वेगवेगळे असतात. त्यांना विशिष्ट नावे असतात. देवतांना संतुष्ट करण्यासाठी ऋचांचे गायन करण्याचे काम सामवेद्यांचे असते. ते करणाऱ्या चार ऋत्विजांचा एक गट असतो.त्यांच्या प्रमुखाला उद्गाता म्हणतात. एखादे साम तयार झाले की त्याच्या गायनाचे पाच अवयव तयार होतात, ते असे :-१. प्रस्ताव२. उद्गीथ३. प्रतिहार४.उपद्रव५. निधन
सामगान करताना त्यातील ऋचांची आवृत्ती केली जाते त्याला स्तोम असे म्हणतात. साम हे प्राय: तीन ऋचांवर गायले जाते आणि त्याचे तीन पर्याय म्हणजे तीन आवृत्त्या करतात.



                                           सामगानाचे स्वरूप

      सामगानात पदांच्या १ ते ७ अंकांनी संगीताच्या सात स्वरांचा निर्देश केला जातो. प्राय: अधिकांश मंत्रांमध्ये पाचच स्वर लागतात. सहा स्वरांनी गायिली जाणारी सामे थोडी आहेत आणि सात स्वरांची त्याहून थोडी आहेत.



                                                साममंत्र

    यात तेरा प्रपाठक असून, सामगायनाचा विधी, त्याचे संकेत आणि त्याच्या पद्धती यांचे हे वर्णन आहे. हे एका प्रकारचे सामवेदाचे व्याकरणच आहे. 


                                                                                                                    संदर्भ -  wikipedia

 


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